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आदिवासियों के आंदोलन को कमजोर करने के लिए जनजाति मंच रच रही है साजिश : फ्रंट

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बेवजह दिउरी दिरी आदिवासियों के आंदेालन में चर्च को न घसीटे : राजकुमार नागवंशी


रांची : आर.एस.एस व वनवासी कल्याण केंद्र बरियातु संचालित जनजाति सुरक्षा मंच के क्षेत्रीय संयोजक संदीप उरांव, प्रवक्ता मेघा उरांव, तुलसी प्रसाद गुप्ता, रवि प्रकाश उरांव व सोमा उरांव के बयान की निंदा ऑल इंडिया क्रिश्चियन माइनोरिटी फ्रंट के प्रवक्ता राजकुमार नागवंशी और महासचिव प्रवीण कच्छप, अध्यक्ष कुलभूषण डुंगडुंग ने की हैं। उन्होंने कहा कि मंच के लोगों के द्वारा दिवरी दिरी बुंडू मंदिर विवाद में आदिवासियों के आंदोलन को कमजोर करने के लिए चर्च का नाम घसीट रहे हैं। जबकि जनजाति सुरक्षा मंच खुद हिंदू कट्टरपंथी पोषित संगठनों से फंडिंग संस्था हैं। जनजाति सुरक्षा मंच हमेशा से आदिवासी आंदोलन व आदिवासियों को तोड़ने का काम करती हैं। जो हमेशा चर्च का आंदोलन बताकर जनआंदोलनों को प्रभावित करने की कोशिश करती हैं। ये वही डिलिस्टिंग गैंग है जो आदिवासी जनसंख्या को कम करने की साजिश कर रही है ताकि झारखंड जैसे राज्य को पांचवीं अनुसूची राज्य का दर्जा समाप्त हो जाए। साथ ही यहां लोकसभा और विधानसभा में आदिवासियों के लिए जो सीटे आरक्षित हैं, उसे कम करके यहां के प्रकृतिक संसाधनों को पूंजीपतियों को दे सके। ये जनजाति सुरक्षा मंच कभी अदिवासियों के शोषण, उत्पीड़न पर आवाज नहीं उठाती हैं, सिर्फ चर्च का नाम लेकर आदिवासियों को दिग्भ्रमित करती हैं। चाहे सरना-आदिवासी कोड का मामला हो या सीएनटी-एसपीटी संशोधन का मामला हो या धर्मांतरण का मामला हो। सभी आदिवासी आंदोलनों को मंच ने फूट डालकर कमजोर करने की साजिश की हैं।
फ्रंट ने कहा कि आज दिउरी दिरी मंदिर में बड़ा आदिवासी समाज अपने संवैधानिक अधिकार, पांचवीं अनुसूची में मिले अधिकार व अपने परंपरागत धार्मिक-सामाजिक पूजा स्थलों व जमीन को बचाने के लिए एकजुट हुआ है। आदिवासी समाज में जागृति आई है। ऐसे में ये आर.एस.एस पोषित हिंदू वादी जनजाति सुरक्षा मंच आदिवासियों के आंदोलन में चर्च का नाम घसिट कर आंदोलन को कमजोर करने की कोशिश में लगी हैं। जिसका फ्रंट विरोध करता है।
जनजाति सुरक्षा मंच हमेशा डिलिस्टिंग की बात कर आदिवासी एकता को तोड़ने की बात करता है, जबकि तात्कालीन रघुवर सरकार के समय आरटीआई से मिले दस्तावेजों से स्पष्ट हो चुका है कि जबरन-प्रलोभन के आधार पर किया गया परिवर्तन धर्मांतरण की श्रेणी में आएगा। चाहे आदिवासी से ईसाई बने, चाहे आदिवासी से हिंदू बने या आदिवासी से मुसलमान बने। सभी धर्मांतरण की श्रेणी में आएगें। आरटीआई से मिले आंकड़ों के अनुसार झारखंड में आदिवासियों की जनसंख्या 86,45,042 हैं। जिसमें सरना कोड को मानने वालों की संख्या 40,12,622, हिंदू धर्म मानने वालों की संख्या 32,45,856, ईसाई मानने वालों की संख्या 13,38,175, किसी धर्म को नहीं मानने वाले 25,971, मुस्लिम धर्म मानने वाले 18,107, बौर्द्ध धर्म मानने वाले 2,946, सिख धर्म मानने वाले 984 और जैन धर्म मानने वाले 381 आदिवासी हैं। पूरे आंकड़ों से स्पष्ट है कि ईसाई से ज्यादा हिंदू धर्म में आदिवासियों का धर्मांतरण हुआ हैं। इसलिए डिलिस्टिंग होगी तो तो प्रकृतिवादी को छोड़कर सभी का होगा। जनजाति मंच के लोग खुद हिंदू धर्म में धर्मांतरित लोग हैं। जबकि आदिवासी आकृतिवादी नहीं वरन प्रकृतिवादी हैं। फ्रंट मंच के हर क्रिया पर अब प्रतिक्रिया देगा। जल्द ही इन लोगों के खिलाफ थाना, न्यायालय, राज्यपाल और मुख्यमंत्री के पास शिकायत दर्ज कराई जाएंगी।

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