रोजे के तिब्बी, जिस्मानी व रूहानी फायदे
रोजे के तिब्बी, जिस्मानी व रूहानी फायदे
(मो० युसुफ अंसारी)
(राष्ट्रीय उर्दू भाषा विकास परिषद)
मजहब इस्लाम का हर आदेश किसी न किसी हिकमत व फलसफे पर आधारित होता है लिहाजा जहाँ पर इस्लाम ने अपने अनुयायों पर बहूत से अनिवार्यता को लागू किया है वहीं पर उनकी शारीरीक व अध्यातमिक इलाज के लिए रोज की फरजियत का हुकम सुनाए, जब एक राजदार अपने रब के हुकम से हलाल चिजों के उपयोग से रूक जाता है तो फिर यह हमेशा के लिए हराम करदह चिजो के करीब भी कैसे फटक सकता है। एक मुस्लमान जब रमजान के महीने में भूखा प्यासा रह कर अपने खालीक के आदेशों का पालन करने के लिए हमेशा कमरबस्ता व कटिबद्ध रहता है यही अभ्यास और ट्रेनिंग की वजह से इश्वर अल्लाह अपने बनदे के दिलों में तकवा यानी परहेजगारी जैसा विशेषता उत्पन्न कर देता है।
इसान के इस अमल के तरज़ पर जब घोड़ों के सवारी का आम रिवाज था उस वक्त अहले-अरब अपने घोड़ों को मेहनती और फुर्तिले बनाने के लिए अकसर मुखा प्यसा रखते थे जिस की वजह से भूख प्यास की शिदत व तकलीफ (कष्ट) को झेलने और बरदास्त करने के आदी हो जाते थे, चुना अहले-अरब अएस घोड़ों को ( फसे शायम) रोजेदार घोडे कहते थे जिस तरह घोड़े के गेजा (खुराक) को कम कर के उसे घोड़े दौड़ और युद्ध के लिए तैयार किया जाता था उसी तरह रोजा भी मोमीनों को राहे जुलजलाल (इश्वर की राह में पूरअजम व तेजगाम और जफाकस (मेहनती बनाने के लिए फर्ज कीया गया. इस तरह से रोजे से जिसमानी फायदे हासिल किये जा कसते हैं. रोजह नफस की सरकशी को तोड़ने के नेहायत ही मोदस्सिर (कारगर ) हप्यार है, आम तौर पर इनसान नफसानी ख्वाहिसात का असीर (गूलाम) हो कर दील में उभरनेवाले बुराईयों के दल-दल में फंस जाता है. चुनाचा रोजह एक अएसी इबादत है जो के नफस की बढ़ती सरकशी को लगाम देता है और हैयानी ख्वाहिसात को काबू नहीं होने देता, यही वजह है के रसूले अकरम स० ने नवजवानों की जमाअत (गिरोह को सम्बोधित करते हुए कहा कि अए नौजवानों की जमाअत तूम में से जो कोई सख्त शादी की ताकत रखता हो वो शादी करले इस वजह से की ये निगाहों की और शरमगाहों की हिफाजत का जरिया है और जो कोई इसान इसकी ताकत नही रखता तो उसे रोजा रखना चाहिए. इस तरह राजह नफसानी ख्वाहिश के जोर को तोड़ता है सही बुखारी 5065 मुस्लिम 1400,
राजे के विभन्न तिब्बी (रोगों का उपचार) फवायद भी हासिल होते हैं, अल्लेह तबारक व ताला का अपने बनदों पर बहुत सारे इनामात व एहसानात है अल्लाह ताला का एक बड़ा फजल व करम ये है कि उसने हमारे जिन इबादतों को उम्मत के लिए लाजमी करार दिया है यह इंसानी सेहत व तंदूरूरती के लिए टॉनिक और मकवी दया की हैसियत रखते हैं और ये इबादतें इंसानी शरीर के विभन्न बीमारीयों के खातमे का नेहायत हि अचुक माध्यम है खुद डॉकटरों व वैदधों ने इसके भिन्न तिब्बी फवेदे बताये है, विश्व स्वास्थ्य संगठन के माहिर डॉ० जोजफ और आधुनिक चबाई बिमारी के शोधकरता ने ये साबित कीया है कि रोजे की वजह से आदमी गुर्दे की बीमारी पैरों में होने वाले सुजन, जोड़ों के पुराने दरदों और शरीर में बढते कोलेस्ट्रॉल से महफुज रखता है. इसके एलावा रोजह दिल की बीमारीया, मोटापे और रक्तचाप में भी हद दरजा मुफिद है,
तमाम उम्मते मुस्लमा को चाहिए की इस अफजल महीने से फायदा उठाते हुए उन तमाम तरह के स्प्रीट की आदी बन जाएँ के गैरे रमजान में भी हमारे अन्दर यही स्प्रीट, विचार और भवनाएँ कायम व दायम रहें।

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