HomeJharkhand Newsविश्व दुग्ध दिवस पर झारखंड सरकार के गव्य विकास विभाग द्वारा ‘स्वास्थ्य के लिए दूध का महत्व’ विषयक कार्यशाला आयोजित
विश्व दुग्ध दिवस पर झारखंड सरकार के गव्य विकास विभाग द्वारा ‘स्वास्थ्य के लिए दूध का महत्व’ विषयक कार्यशाला आयोजित
सरकारी योजनाओं का लाभ उठाएं पशुपालक : विधान चंद्र चौधरी
विशेष संवाददाता
रांची। दुग्ध उत्पादन में झारखंड को आत्मनिर्भर बनाने में पशुपालकों की महत्वपूर्ण भूमिका है। राज्य सरकार पशुपालकों को कल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से हर संभव सहयोग करने को तत्पर है। पशुपालक सरकारी योजनाओं का भरपूर लाभ उठाएं और दूध उत्पादन में झारखंड को आत्मनिर्भर बनाने में सहयोग करें। उक्त बातें कृषि, पशुपालन एवं सहकारिता विभाग के अपर सचिव विधान चंद्र चौधरी ने झारखंड सरकार के गव्य विकास विभाग द्वारा विश्व दुग्ध दिवस के अवसर पर गुरुवार को आयोजित एक दिवसीय कार्यशाला में बतौर मुख्य अतिथि कही।
मौके पर ‘स्वास्थ्य के लिए दूध का महत्व’ विषयक कार्यशाला में उपस्थित पशुपालकों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि झारखंड दुग्ध उत्पादन में आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर है। इसमें पशुपालकों की अहम भूमिका है। राज्य सरकार द्वारा पशुपालकों को हर संभव सहयोग किया जा रहा है।
गव्य प्रशिक्षण एवं प्रसार संस्थान, धुर्वा के सौजन्य से प्रशिक्षण सभागार में विश्व दुग्ध दिवस के अवसर पर ‘स्वास्थ्य के लिए दूध का महत्त्व’ विषय पर राज्य के प्रगतिशील दुग्ध उत्पादकों के लिए कार्यशाला में
राज्य के लगभग सभी जिलों से प्रगतिशील दुग्ध उत्पादक शामिल हुए
मंच संचालन सेवानिवृत्त गव्य तकनीकी पदाधिकारी मिथिलेश प्रसाद सिंह द्वारा किया गया। वहीं,स्वागत भाषण डाॅ.मनोज कुमार तिवारी (उप निदेशक (गव्य) -सह- मुख्य अनुदेशक) द्वारा किया गया। उनके द्वारा जानकारी दी गई कि वर्ष 2001 से संयुक्त राष्ट्र संघ के सौजन्य से विश्व दूध दिवस पूरे विश्व में एक जून को मनाया जाता है। इस वर्ष (2023) में करीब 190 देशों में दुग्ध दिवस मनाया जा रहा है।
उन्होंने बताया कि हिन्दुस्तान पूरे विश्व में सबसे ज्यादा दुग्ध उत्पादन करता है, परन्तु प्रति व्यक्ति दूध की उपलब्धता कम है।
वर्तमान में झारखंड सरकार के सौजन्य से कई योजनायें पशुपालकों के लिए चलाई जा रही है, जिसमें मुख्यमंत्री पशुधन विकास योजना विशेष है। डाॅ.नन्दनी कुमारी, (सहायक प्राध्यापक, रांची पशुचिकित्सा महाविद्यालय) द्वारा स्वास्थ्य के लिए दूध के महत्व पर विस्तृत जानकारियां दी गई। उन्होंने दूध के प्रत्येक अवयव एवं उसकी गुणवत्ता के बारे में बतलाया। दूध के लिए देशी गाय से उत्पादित दूध जिसे ए2 के नाम से जाना जाता है, उसकी महत्ता पर भी प्रकाश डाला।
कार्यशाला में झारखंड मिल्क फेडरेशन के डाॅ.त्रिलोक चन्द्र गुप्ता ने दूध उत्पादन के लिए हरा चारा की महत्ता पर प्रकाश डाला। उन्होंने दुधारू पशुओं के खान-पान एवं अपशिष्ट से उत्पन्न मिथेन गैस से बचने की जानकारी दी।
कार्यशाला को संबोधित करते हुए सेवानिवृत्त सहायक निदेशक (गव्य) रवीन्द्र कुमार सिन्हा द्वारा स्वास्थ्य के लिए दूध की महत्ता पर प्रकाश डाला गया। उन्होंने कहा कि चाहे संकर नस्ल की गाय हो या देशी, सभी का दूध ए2 श्रेणी में आता है। उन्होंने कहा कि दुधारू पशुओं को संतुलित पशु आहार ही देने का प्रयास करें।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए सेवानिवृत्त जिला गव्य विकास पदाधिकारी अशोक कुमार सिन्हा ने जानकारी दी कि राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान, बंगलोर ने सभी संकर नस्ल की गायों को हटाकर देशी गाय को ही संस्थान में रखा है। उन्होंने कहा कि संस्थान द्वारा एक अनुसंधान किया गया और साबित किया गया कि संकर नस्ल की गायों की तुलना में देशी गाय किसानों के लिए ज्यादा फायदेमंद है। उन्होंने बताया कि अभी तक कम्फेड, जिस पर बिहार राज्य का आधिपत्य है, झारखंड को नहीं हो पाया है, इस पर पहल करने की जरूरत है।
गव्य विकास निदेशालय के डाॅ. अजय कुमार यादव उप निदेशक (गव्य) द्वारा दूध की महत्ता एवं उसके स्वास्थ्य के ऊपर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई।
भूतपूर्व जिला गव्य विकास पदाधिकारी शशांक शेखर प्रसाद सिन्हा ने कहा कि कार्यशाला का मतलब यह नहीं है कि सिर्फ वक्तव्य सुनें और घर में जाकर बैठ जायें। कार्यशाला में जितनी भी जानकारी दूध उत्पादकों को दी गई है, उन पर अमल करने की जरूरत है।
गोशाला को सौर ऊर्जा और गोबर गैस संयंत्र से संचालित करें: संतोष जायसवाल
प्रगतिशील दुग्ध उत्पादक संतोष जायसवाल द्वारा कहा गया कि अपने गौशाला को सौर ऊर्जा एवं गोबर गैस ऊर्जा से संचालित करें।
कार्यक्रम के अंत में सुरेश कुमार(गव्य तकनीकी पदाधिकारी) द्वारा धन्यवाद ज्ञापन किया गया। कार्यक्रम को सफल बनाने में विजय श्रीवास्तव, प्रियंका कुमारी, मोहनजी लाल, त्रिशुल प्रकाश सिंह, संतलाल प्रसाद, वशिष्ट सिंह, मनोज कुमार, राजीव रंजन, सुरेश कुमार, गव्य तकनीकी पदाधिकारी एवं विभा रानी, सरोज लकड़ा सहित अन्य का महत्वपूर्ण योगदान रहा।

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