Tuesday, September 17, 2024
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मत्स्य निदेशालय की नई पहल, अब झारखंड में सुलभ होगा मांगुर, सिंघी,पाबदा व टेंगरा मछली का उत्पादन

दो दर्जन चयनित मत्स्यपालकों को कैटफिश के प्रजनन और बीज उत्पादन के लिए किया गया प्रशिक्षित


मछली उत्पादन में आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहा झारखंड : डॉ.एचएन द्विवेदी

विशेष संवाददाता

रांची। अब झारखंड के मत्स्यपालक अपने जलाशयों में मांगुर, सिंघी, पाबदा व टेंगरा आदि मछलियों का भी उत्पादन आसानी से कर सकेंगे। इसके लिए मत्स्य निदेशालय द्वारा पहल की गई है।
मत्स्यपालकों को इन मछलियों की प्रजाति के मत्स्य बीज आसानी से उपलब्ध होंगे। हाल ही में मत्स्य विभाग की ओर से झारखंड के विभिन्न जिलों के 24 चयनित मत्स्यपालकों की एक टीम को आईसीएआर-सीआइएफए (केन्द्रीय मीठा पानी जलकृषि अनुसंधान संस्थान) कौशल्यागंगा, भुवनेश्वर, उड़ीसा के क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्र, रहड़ा, कल्याणी, पश्चिम बंगाल में कैटफिश के प्रजनन और बीज उत्पादन पर प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए भेजा गया था। टीम का नेतृत्व रजनी गुप्ता (मत्स्य प्रसार पदाधिकारी, बोकारो) ने किया।
विदित हो कि झारखंड के जलाशयों में अधिष्ठापित केजों में व्यापक रूप से पंगेशियस मछली का पालन किया जा रहा है, जिसके लिए बीज की आवश्यकता होती है। विभागीय अधिकारियों के मुताबिक राज्य में करीब 7000 केज अधिष्ठापित है, जिसमें 50 करोड़ मत्स्य बीज की आवश्यकता है। वर्तमान में कैटफिश की श्रेणी में आने वाले पंगेशियस के बीज पश्चिम बंगाल से मंगाये जा रहे हैं। इसके बीज के संवर्धन के लिए झारखंड में प्रशिक्षण की आवश्यकता महसूस की जा रही थी। इसी को ध्यान में रखते हुए कैटफिश के प्रजनन एवं बीज उत्पादन पर प्रशिक्षण हेतु राज्य के मत्स्य कृषकों को केन्द्रीय मीठा पानी जलकृषि अनुसंधान संस्थान, रहड़ा, पश्चिम बंगाल भेजा गया।


विभाग के मुख्य अनुदेशक ने बताया कि चार दिवसीय प्रशिक्षण के दौरान मत्स्य कृषकों को वायुस्वांसी मछली यथा मांगुर, सिंघी, पाबदा, टेंगरा, इत्यादि के प्रजनन (हैचरी संचालन) एवं बीज उत्पादन, के संबंध में विस्तृत जानकारी दी गई।
प्रशिक्षण के क्रम में मत्स्यकृषकों के बीच कैटफिश के प्रजनन के बारे में विशेषज्ञों ने महत्वपूर्ण व्याख्यान दिए। साथ ही हैड ऑन प्रैक्टिस भी कराया गया।
प्राप्त जानकारी के अनुसार वर्तमान में राज्य में भारतीय मेजर कार्प (आइएमसी) का प्रजनन (हैचरी संचालन) एवं बीज उत्पादन किया जा रहा है तथा राज्य बीज (आइएमसी) उत्पादन के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर है। कैटफिश के प्रजनन के संबंध में जानकारी होने पर हैचरी लाभुकों द्वारा कैटफिश का भी प्रजनन कराया जा सकेगा। ताकि स्थानीय स्तर पर मत्स्यकृषकों को पंगेशियस के साथ-साथ सिंधी, मांगुर, पाबदा, टेंगरा आदि के बीज भी उपलब्ध हो सके।

गौरतलब है कि सिंधी, मांगुर, पाबदा, टेंगरा, इत्यादि मछलियों का बाजार मूल्य भारतीय मेजर कार्प की तुलना में अधिक होता है एवं वायुस्वांसी होने के कारण कैटफिश मछलियां अधिक देर तक जीवित रहती है व जीवित अवस्था में ही बाजार में बिक्री की जा सकती है। इन मछलियों में प्रोटीन के साथ-साथ आयरन की मात्रा भरपूर होती है, जिसके कारण कैटफिश मछलियां अधिक स्वास्थ्यवर्धक मानी जाती है। छोटे बच्चों, वृद्ध एवं महिलाओं के लिए ये मछलियों काफी लाभदायक हैं।

मत्स्य उत्पादन की बारीकियां सिखाने जल्द ही झारखंड आएगी विशेषज्ञों की टीम

प्रशिक्षण कार्यक्रम में क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्र, रहड़ा के कार्यक्रम संचालक डॉ.बीएन पॉल, प्रधान वैज्ञानिक डॉ.एस सरकार, अजमल हुसैन, (सभी पाठ्यक्रम निदेशक), डॉ.एस अधिकारी, डॉ.आरएन मंडल, डॉ.फरहाना, अरबिंद दास (सभी पाठ्यक्रम समन्वयक) और अन्य सभी कर्मचारियों ने झारखंड के मत्स्यकृषकों को बारीकी से कैटफिश के बीज उत्पादन के बारे में जानकारी दी। सभी मत्स्य कृषकों ने कैटफिश के बीज उत्पादन पर प्रशिक्षण के लिए सीफा, भुवनेश्वर के निदेशक डॉ.पीके साहू के साथ-साथ झारखंड मत्स्य निदेशालय के निदेशक डॉ. एचएन द्विवेदी के प्रति आभार व्यक्त किया।
मुख्य अनुदेशक प्रशांत कुमार दीपक ने बताया कि झारखंड के निदेशक (मत्स्य) के अनुरोध पर आइसीएआर- सीआइएफए, भुवनेश्वर के प्रधान वैज्ञानिक डॉ.पी राउत, डॉ.नागेश बड़ाईक तथा डॉ. संग्राम साहू की एक टीम झारखंड भ्रमण के लिए शीघ्र ही आएगी, जो राज्य में पंगेशियस बीज उत्पादन के साथ-साथ अन्य कैटफिश मछलियों के बीज उत्पादन के लिए तकनीकी सहयोग प्रदान करेगी।

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