All India NewsBihar NewsBlogfashionhealthNewsPatna NewsRanchi Jharkhand News

शख्सियत: अनुकरणीय है गांव के प्रति शैलेन्द्र कुमार का समर्पण

Share the post

कहते हैं भारत की आत्मा गांवों में बसती है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ किए बिना स्वस्थ और समृद्ध समाज निर्माण संभव नहीं है।
गांव के सर्वांगीण विकास में सामूहिक सहभागिता जरूरी है।
इसी सोच के साथ तकरीबन चार-पांच दशक पूर्व गांव की सुरक्षा,संस्कृति व गौरवशाली परंपराओं के संरक्षण-संवर्द्धन के उद्देश्य से पटना जिलांतर्गत बख्तियारपुर प्रखंड के गांव करनौती में शैलेन्द्र कुमार (भुन्नी सिंह) ने ग्राम विकास समिति का गठन किया। समिति का अध्यक्ष तत्कालीन मुखिया व क्षेत्र के जाने-माने समाजसेवी रामसागर सिंह को बनाया गया।
भुन्नी सिंह ने समिति के संयोजक के रूप में बखूबी अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए गांव के सर्वांगीण विकास के लिए समर्पित भाव से कार्य करना शुरू किया। समिति का कार्य मुख्य रूप से फसल सुरक्षा के साथ-साथ सामाजिक कार्यों में बढ़कर सहभागिता निभाना रहा।
भुनी सिंह बताते हैं कि उन दिनों सही मायने में जमीन सोना उगलती थी। रासायनिक खाद और कीटनाशकों का प्रयोग नाममात्र का हुआ करता था। पैदावार खूब होती थी। खेत-खलिहान में फसलों की सुरक्षा ग्राम वासियों की प्राथमिकता में शुमार था। खेत में फसल की बुवाई से लेकर कटाई तक की अवधि में ग्रामवासी रात-रात भर जाग कर फसलों की सुरक्षा किया करते थे। समिति से जुड़े लोगों को जिम्मेदारी सौंपी गई। समिति के लोग नियमित रूप से टॉर्च व लाठी-डंडे लेकर रात्रि गश्त किया करते थे। फसल के साथ-साथ सिंचाई के लिए लगाए गए बोरिंग व पंपिंग सेटों की सुरक्षा भी काफी चुनौती पूर्ण होती थी। उन दिनों फसल चोरों का आतंक चरम पर था। इसकी रोकथाम के लिए ग्रामवासी रतजगा जगह किया करते थे।
भुन्नी सिंह बताते हैं कि ग्राम विकास समिति में तत्कालीन उप मुखिया स्व. जुगेश्वर सिंह, प्रगतिशील किसान स्व.नागेश्वर सिंह, स्व.कृष्णनंदन सिंह, स्व.कामता सिंह, स्व.बंगाली राम, स्व.भत्तू सिंह, स्व.धर्मनाथ सिंह, रमेश सिंह सहित अन्य ग्रामीण शामिल थे।
फसल सुरक्षा और सामाजिक कार्यों में बढ़कर सहभागिता निभाना समिति व अन्य ग्रामीणों की दिनचर्या में शुमार था। सुरक्षा के दृष्टिकोण से ग्राम विकास समिति के पदधारियों व सदस्यों की ऐसी सक्रियता होती थी, कि परिंदा भी पर नहीं मार सकता था। शादी-विवाह व अन्य समारोह पर सामाजिक समरसता व सामूहिक सहभागिता भी देखने लायक होती थी। विभिन्न धार्मिक-सामाजिक व सांस्कृतिक आयोजनों पर पूरा गांव एक परिवार की तरह दिखता था।
कालांतर में भुन्नी सिंह सरकारी सेवा में चले गए, लेकिन जब भी छुट्टियों में गांव आते, तो सामाजिक कार्यों में बढ़-चढ़कर सहभागिता निभाते रहे।
समय के साथ-साथ धीरे-धीरे ग्रामीण परिवेश भी बदलता गया। जीवन जीने की जद्दोजहद और तेजी से बदलती जीवन शैली ने ग्रामीण परिवेश को भी प्रभावित किया है।
भले ही ग्रामीण अर्थव्यवस्था तेजी से विकसित हुई,लेकिन अब गांवों में सामाजिक समरसता का अभाव दिखने लगा है।
*दुर्जनों की सक्रियता से नहीं, सज्जनों की निष्क्रियता से समाज को होता है अधिक नुकसान!

श्री सिंह का मानना है कि समाज को दुर्जनों की सक्रियता से उतना नुकसान नहीं पहुंचता है, जितना की सज्जनों की निष्क्रियता से। समाज के बुद्धिजीवी वर्ग को मूकदर्शक बने रहने से दुष्टों की सक्रियता और बढ़ जाती है। दुर्जन हावी होने लगते हैं। अन्याय,अत्याचार और गलत कार्यों के विरोध में मुखर होकर समाज के सभ्य लोगों को आगे आना चाहिए।
वह कहते हैं कि गांव के जनप्रतिनिधियों और प्रशासनिक अधिकारियों के बीच बेहतर समन्वय और पारदर्शिता से ग्रामीण विकास को गति मिलती है।
श्री सिंह कहते हैं कि
गांव हमारी जड़ों की जगह है, जहां से हमारी संस्कृति और परंपरा की शुरुआत होती है। गांव के प्रति समर्पण से हम न केवल अपने समाज को मजबूत बना सकते हैं, बल्कि अपने देश के विकास में भी योगदान कर सकते हैं।
गांव की समस्याओं को समझना और उसके समाधान की दिशा में प्रयासरत रहने की आवश्यकता है। गांव के लोगों के साथ सहयोग और सहानुभूति के साथ व्यवहार करने की जरूरत है।
गांव की संस्कृति और परंपरा को संरक्षित और बढ़ावा देना जरूरी है।
आइए, हम गांव के प्रति समर्पण के साथ काम करें और अपने समाज को मजबूत और समृद्ध बनाएं।
*ग्रामीण शिक्षा, स्वास्थ्य व बुनियादी सुविधाओं की उपलब्धता सुनिश्चित हो

गांवों में शिक्षा की उपलब्धता और गुणवत्ता में सुधार के प्रति हमें सजग रहना चाहिए। स्वास्थ्य, स्वच्छता, और पर्यावरण संरक्षण के बारे में जागरूकता अभियान चलाना चाहिए। पर्यावरण संरक्षण का संदेश संप्रेषित करने में भी गांव की महत्वपूर्ण भूमिका है। गांव की हरियाली हमारे जीवन में खुशहाली लाती है।
गांवों में स्वच्छता और साफ-सफाई की व्यवस्था करना,
गांवों में कृषि विकास के लिए नई तकनीकों और संसाधनों का उपयोग करना,
गांवों में ग्रामीण उद्योगों को बढ़ावा देना और रोजगार के अवसर पैदा करना,
गांवों में सड़क और परिवहन की सुविधा में सुधार करना,
बिजली और पानी की आपूर्ति में सुधार करना,
गांवों में सामाजिक समरसता और एकता को बढ़ावा देना, सांस्कृतिक धरोहर और परंपराओं का संरक्षण और बढ़ावा देना,
गांवों में प्रशासनिक सुधार और पारदर्शिता लाना, सामुदायिक भागीदारी और निर्णय लेने की प्रक्रिया में सुधार करना आदि तत्वों पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है, तभी गांवों के सर्वांगीण विकास का सपना साकार हो सकता है। भारत की आत्मा सुरक्षित रह सकती है।

*(प्रस्तुति: मिथिलेश कुमार सिंह)

Leave a Response