कोचिंग इंडस्ट्री बन चुकी है शोषण का अड्डा: झारखंड में बच्चों और अभिभावकों से की जा रही करोड़ों की लूट, विरोध करने वालों को बाउंसर से डराने की साजिश;आलोक कुमार दूबे अध्यक्ष पासवा


“गोल इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर बिपिन कुमार सिंह का पर्दाफाश: फर्जी प्रचार के ज़रिए छात्रों को लुभाने का आरोप, पासवा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बोले–48 घंटे के अंदर छात्र शब्बीर अंसारी के झूठे प्रचार प्रसार का मामला स्पष्ट करे वरना 30 तारीख को FIR तय है!”
शिक्षा के नाम पर व्यापार: बिहार से आए कोचिंग संस्थान झारखंड में आदिवासी बच्चों की उम्मीदें लूट रहे हैं
झारखंड के जंगलों से निकले बच्चों को धोखा: बिहार एवं दूसरे प्रदेशों से आए एजुकेशन माफिया ने रांची को बना दिया शिकार
फिटजी ने जनवरी 2025 में बच्चों से करोड़ों रुपये लेकर राजधानी रांची से फरार हुए थे फिर दुबारा से वापस बच्चों से ठगना शुरु कर दिया है;आलोक कुमार दूबे
पासवा के राष्ट्रीय अध्यक्ष आलोक कुमार दूबे ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर झारखण्ड में फैलती कोचिंग माफिया की असलियत को सामने लाने का प्रयास किया है। उन्होंने कहा कि आज कोचिंग संस्थान शिक्षा नहीं, शोषण का माध्यम बन चुके हैं। विशेष रूप से झारखंड जैसे राज्य में, जहां बड़ी संख्या में आदिवासी गरीब,पिछड़े समुदाय के बच्चे उच्च शिक्षा के सपने लिए निकलते हैं, वहीं ये संस्थान उनके और उनके परिवार के सपनों को तोड़कर मुनाफाखोरी की नींव पर खड़े हैं।
उन्होंने कहा कि इन संस्थानों की असली कमाई झूठे वादों और भारी प्रचार के बल पर होती है। हर वर्ष एडमिशन के समय ये संस्थान इतने आकर्षक विज्ञापन और ब्रेनवॉशिंग अभियान चलाते हैं कि अच्छे-अच्छे पढ़े-लिखे माता-पिता भी भ्रमित हो जाते हैं। ये कोचिंग सेंटर बड़े-बड़े स्कूलों से सांठगांठ कर वहां के बच्चों को प्रभावित करते हैं, उन्हें बताते हैं कि उनके बिना कोई भविष्य नहीं, और धीरे-धीरे बच्चे न सिर्फ स्कूल से कट जाते हैं बल्कि मानसिक रूप से टूटने लगते हैं।
रांची में गोल इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर बिपिन कुमार सिंह छात्र ने सबीर अंसारी नामक छात्र की झूठी सफलता की कहानी गढ़ कर पूरे शहर में बड़े-बड़े बैनर और होर्डिंग लगवाए, जबकि सबीर ने ऐम इंस्टिट्यूट से पढ़ाई की ओर अपने चौथे अटेम्प्ट में 79वे रैंक लाए ।
गोल इंस्टीट्यूट के मालिक विपिन कुमार सिंह को बच्चों के शिक्षा दीक्षा से कोई लेना-देना नहीं है, येअपना साम्राज्य और सल्तनत फैलाने रांची आए हैं और अपने कारोबार को आगे बढ़ाने के लिए बच्चों को झूठे वादे और झूठे सपने दिखाकर उनके भविष्य के साथ खिलवाड़ करते हैं।
दूबे ने कहा, “ये सिर्फ गोल इंस्टीट्यूट की बात नहीं है, बल्कि हर बड़े कोचिंग संस्थान का यही धंधा है। बच्चों की मेहनत को झूठे नाम से जोड़कर गरीब और आदिवासी छात्रों को लुभाया जाता है। ये फर्जीवाड़ा है और इसके खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए।”
उन्होंने सरकार से इस मामले में संज्ञान लेने की मांग करते हुए कहा कि अगर डायरेक्टर खुद 48 घंटा के अंदर सामने आकर सफाई नहीं देते, तो वे वरीय आरक्षी अधीक्षक से मिलकर 30 तारीख को एफआईआर दर्ज कराएंगे।
ये सिर्फ एक संस्थान की नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम की बीमारी बन चुकी है, जहाँ पैसे और प्रचार के दम पर झूठे सपने बेचे जाते हैं। गरीब, पिछड़े और आदिवासी समाज के बच्चों को बहकाया जा रहा है।
उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि पिछले साल जनवरी 2025 फिटजी जैसे एक प्रतिष्ठित कोचिंग संस्थान ने बच्चों और उनके अभिभावकों से करोड़ों की फीस वसूल कर जनवरी 2025 में चुपचाप रांची से गायब हो गया। कई परिवारों ने अपने गहने गिरवी रखे, कुछ ने अपनी ज़मीन बेची, कुछ ने वर्षों की जमा पूंजी बच्चों की पढ़ाई में लगा दी — लेकिन जब रिजल्ट और भविष्य की बारी आई, तो यह संस्थान भाग चुका था। अब जब एक बार फिर एडमिशन का मौसम आया है, वही संस्थान विज्ञापन और प्रचार के ज़रिए फिर से मैदान में है।
उन्होंने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि ये संस्थान बच्चों को नॉन-स्कूलिंग सिस्टम की ओर धकेलते हैं। स्कूल के बजाय सारा ध्यान कोचिंग पर होता है, जिससे बच्चे सामाजिक वातावरण से दूर हो जाते हैं। सुबह से शाम तक सिर्फ टेस्ट सीरीज, मॉड्यूल्स, मॉक्स और प्रेशर — यह दिनचर्या न तो किसी किशोर के मानसिक विकास के अनुकूल है, न ही उनके शारीरिक स्वास्थ्य के। कई बच्चे अवसाद में चले जाते हैं, आत्मविश्वास खो देते हैं और कुछ तो आत्महत्या जैसा गंभीर कदम भी उठा लेते हैं।
कोचिंग संस्थानों पर आरोप यह भी है कि ये बिना किसी सरकारी निगरानी के अपनी मनमानी फीस तय करते हैं। हर साल फीस में बढ़ोतरी की जाती है। जो गरीब और मध्यमवर्गीय परिवार विरोध करने का साहस करते हैं, उन्हें धमकाया जाता है या सिस्टम से बाहर कर दिया जाता है। जब कोई इन संस्थानों की सच्चाई सामने लाने की कोशिश करता है, तो ये अपने पैसे और प्रभाव के दम पर मीडिया से लेकर अफसरशाही तक को चुप करा देते हैं। आम जनता की आवाज़ को दबा दिया जाता है, और जिन बच्चों ने सब कुछ गंवाया, उनकी चीखें सिर्फ दीवारों से टकरा कर रह जाती हैं।
और सबसे बड़ा सवाल यह है कि इन सबके बीच झारखंड के बच्चों का क्या होगा? जिनके पास पहले से ही सीमित संसाधन हैं, जो पीढ़ियों से शिक्षा और अवसर के अभाव में संघर्ष कर रहे हैं — अगर उनके साथ ऐसा छल होगा, तो उनके सपनों और भविष्य की जिम्मेदारी कौन लेगा? क्या जिन बच्चों ने जंगल से निकलकर किताबें उठाई थीं, वे अब ठगे जाने के डर से फिर पीछे लौट जाएंगे? यह एक सामाजिक अपराध है, जो केवल आर्थिक नहीं बल्कि सांस्कृतिक और नैतिक शोषण भी है।
आलोक कुमार दूबे ने यह मांग की है कि अब समय आ गया है जब सरकार को इस पर सख्त नियमावली बनानी चाहिए। कोचिंग संस्थानों के लिए फीस की सीमा तय होनी चाहिए। हर संस्थान को यह स्पष्ट करना चाहिए कि वह छात्रों को क्या देने जा रहा है, और यदि किसी प्रकार की धोखाधड़ी होती है तो उसके लिए कानूनी कार्रवाई अनिवार्य हो। इसके साथ ही हर कोचिंग संस्थान को छात्रों की मानसिक और शारीरिक सेहत को लेकर ज़िम्मेदारी उठानी होगी।
आज यह सोचने का समय है कि क्या शिक्षा केवल उन लोगों के लिए रह जाएगी जिनके पास पैसा है? क्या सपनों का मूल्य अब लाखों-करोड़ों में तौला जाएगा? क्या शिक्षा संस्थानों का काम केवल विज्ञापन करना और प्रवेश शुल्क वसूलना रह गया है? और क्या इस पर सवाल उठाने वालों की आवाज़ को हर बार दबा दिया जाएगा?
झारखंड जैसे राज्य में, जहां हज़ारों बच्चे आज भी संघर्ष कर रहे हैं, वहां शिक्षा मुनाफाखोरी का साधन नहीं बन सकती। यह समाज के हर हिस्से की ज़िम्मेदारी है कि वह इस मुद्दे पर आवाज़ उठाए। कोचिंग माफिया को जवाबदेह बनाना होगा, नहीं तो अगली पीढ़ी सिर्फ नंबरों की मशीन बनकर रह जाएगी — बिना आत्मा, बिना उद्देश्य, और बिना जीवन के।
