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रमजान की बरकत पाने को मुस्लिम औरतें में पायी जाती है ज्यादा जज्बा:नाजनीन कौशर

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रमजानुल मुबारक में इफ्तार के वक्त मांगी गई दुआ होती है कुबूल

ओरमांझी: फ्लोरेंस एडवांस डेंटल केयर इरबा के प्रोपराइटर डॉक्टर नाज़नीन कौशर ने रोजेदारों के हौसलाअफजाई करते हुए बताया कि तेज गर्मी में लोग भूख प्यासे रहकर 15 घण्टे से अधिक समय तक लोग रोजा रख रहें है। रोजेदारों में बच्चें बूढे,मर्द व औरतें शामिल होते है। रमजानुल बड़ा बरकतों व रहमतों वाला होता है। इस महीने में औरतों में नेकी कमाने की जज्बा काफी बढ़ जाता है। औरतें घर का कामकाज करते हुए नेकी के कामों में भी बढ़ चढ़कर हिस्सा लेती है। सेहरी के वक्त आधे रात में उठकर सेहरी तैयार करती है।दिनभर काम खाज करते हुए बाल बच्चों की परवरिश की जिम्मेदारी को निभाते हुए कुरान हदीस नमाज तिलावत अल्लाह का जिक्र करती है।रमजान एक ऐसा महीना है,जिसकी फजीलत तमाम महीनों से ज्यादा है।रमजान महीने की हर रात, हर दिन व हर लम्हा बरकतों से भरा होता है। मुकद्दस रमजान माह की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसी महीने में कुरआन शरीफ नाजिल हुआ। तमाम बालिग मुसलमान मर्द-औरतों का रमजान के तीस रोजे रखना फर्ज है। अल्लाह पाक ने माह-ए-रमजान में मुसलमानों को रोजा रखने का हुक्म दिया है। ताकि, गरीबी व तंगी से जूझते और भूख-प्यास से बिलखते लोगों के दर्द का अहसास हो सके। साथ ही, दिल में मदद करने का जज्बा उभरे। रमजान माह की इबादत की बदौलत बंदा और ज्यादा अल्लाह तआला के करीब हो जाता है। रमजान के महीने भर की इबादत का मकसद यह है कि बंदा साल भर के बाकी ग्यारह माह भी अल्लाह से डरते हुए जिंदगी गुजारे और गुनाहों से बचे। खुद को जिक्र-ओ-फिक्र, इबादत व रियाजत, कुरआन की तिलावत और याद-ए-इलाही में मसरूफ रखे। माह-ए-रमजान में नेकियों का अज्र 70 गुना मिलता है। इसलिए इस माह में ज्यादा से ज्यादा नेक काम कर अज्र समेत नेकी जमा कर लेना चाहिए। रमजान में अल्लाह का जिक्र करने वाले को बख्श दिया जाता है। रमजान के महीने में अल्लाह पाक से मांगने वाला कभी भी महरूम यानी वंचित नहीं रहता। रमजान ऐसा महीना है, जिसमें हर रोज और हर समय इबादत होती है। रमजानुल मुबारक में सेहरी और इफ्तार के वक्त दुआ कुबूल होती है।

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