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मछली पालन में एंटीबायोटिक के प्रयोग के बारे में मत्स्य कृषकों को दी गई जानकारी

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भारत में प्रतिबंधित एंटीबायोटिक का प्रयोग मत्स्य पालन में न करें: डॉ.गौरव राठौर

रांची। आइसीएआर-एनबीएफजीआर (राष्ट्रीय माति्स्यकी आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो), लखनऊ के प्रधान वैज्ञानिक डाॅ.गौरव राठौर तथा वरीय वैज्ञानिक डाॅ. चन्द्र भूषण द्वारा मंगलवार को एंटी माक्रोबायल रेसिस्टेंस (रोगाणुरोधक प्रतिरोध) के बारे में मत्स्य कृषकों को मत्स्य किसान प्रशिक्षण केंद्र, शालीमार के सभागार में जानकारी दी गई। विशेषज्ञों ने बताया कि सामान्यतः मछलीपालन में एन्टीबायोटिक के अधिक प्रयोग से मछलियों में बीमारी समाप्त नहीं हो रही है। बल्कि रोगाणु रोग प्रतिरोधक क्षमता
बीमारियों के प्रति मछलियों में विकसित हो गई है। वैज्ञानिकों ने मत्स्यपालकों को बताया कि हमारे देश में सिर्फ तीन एंटीबायोटिक का प्रयोग मछली पालन में करने की स्वीकृति है। इसमें टेट्रासाइक्लिन-ऑक्सीटेट्रासाइक्लिन, ट्राइमेथोप्रिन और ऑक्सोलिनिक एसिड शामिल है।
वैज्ञानिकों ने मछली पालन में प्रतिबंधित एंटीबायोटिक का प्रयोग न करने की सलाह दी। मत्स्यपालकों को बताया गया कि नाइट्रोफुराजोन, क्लोरोमफेनिकोल,नियोमाइसिन, नैलिडिक्सिड एसिड व सल्फा डाइजिन का प्रयोग मछली पालन में न करें।
इस अवसर पर प्रगतिशील मत्स्य कृषक गण उपस्थित थे। उक्त जानकारी मुख्य अनुदेशक प्रशांत कुमार दीपक ने दी।

बाक्स:
*आईसीएआर एनबीएफजीआर के वैज्ञानिकों ने डीएफओ को भी किया संबोधित

आईसीएआर एनबीएफजीआर के वैज्ञानिक डॉ. गौरव ठाकुर और डॉ.चंद्रभूषण मंगलवार को डोरंडा स्थित मत्स्य निदेशक कार्यालय में निदेशक डॉ.एचएन द्विवेदी की अध्यक्षता में आयोजित जिला मत्स्य पदाधिकारियों की बैठक में भी शामिल हुए।
उक्त दोनों वैज्ञानिकों ने मत्स्य पालन में एंटीबायोटिक के प्रयोग के बारे में महत्वपूर्ण जानकारियां साझा की।
विभागीय अधिकारियों के मुताबिक दोनों वैज्ञानिक अगले दो दिनों तक राज्य के विभिन्न झीलों-तालाबों में किए जा रहे मत्स्य पालन का भी निरीक्षण करेंगे।
बैठक में उप मत्स्य निदेशक अमरेंद्र कुमार, उप मत्स्य निदेशक रवि रंजन कुमार, उप मत्स्य निदेशक मरियम मुर्मू सहित विभिन्न जिलों के मत्स्य पदाधिकारी मौजूद थे।

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