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अंजुमन हॉस्पिटल रांची – रुकावटों के बावजूद तरक्की की राह पर

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अंजुमन इस्लामिया हॉस्पिटल, अंजुमन इस्लामिया रांची का एक अहम हिस्सा है। हालांकि इसकी अपनी एक अलग गवर्निंग बॉडी होती है, जिसमें सचिव, कोषाध्यक्ष, संयुक्त सचिव और कुछ कार्यकारिणी सदस्य शामिल होते हैं। परंपरा के अनुसार अंजुमन इस्लामिया का अध्यक्ष ही हॉस्पिटल का अध्यक्ष होता है। यह व्यवस्था अंजुमन इस्लामिया हॉस्पिटल मेडिकल सर्विसेज सोसाइटी के bylaws में दर्ज है, क्योंकि यह संस्था सोसाइटी एक्ट के तहत पंजीकृत है।
जब भी कोई व्यक्ति अंजुमन इस्लामिया का अध्यक्ष बनता है, वह अपने विवेक से हॉस्पिटल की जनरल बॉडी का गठन करता है। फिर यह जनरल बॉडी एक गवर्निंग बॉडी का चयन करती है, जिसमें सचिव, कोषाध्यक्ष, उपाध्यक्ष, संयुक्त सचिव और कुछ सदस्य शामिल होते हैं। अध्यक्ष वही रहता है जो अंजुमन इस्लामिया का अध्यक्ष होता है। पिछली दो बार तक यही परंपरा चली, जब इमरान साहब अध्यक्ष थे, उन्होंने भी इसी तरीके से कमिटी बनाई थी।

समस्या तब शुरू हुई जब हाजी मोख्तार अंसारी अंजुमन इस्लामिया के अध्यक्ष बने। वे पहली बार अंसारी बिरादरी से आने वाले ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने अपनी मेहनत, सादगी और ईमानदारी से यह पद हासिल किया। अंजुमन के इतिहास में इससे पहले अंसारी बिरादरी का कोई व्यक्ति अध्यक्ष नहीं बना था, जबकि इस बिरादरी की आबादी मुस्लिम समाज में सबसे अधिक है।

हाजी मोख्तार की सफलता कुछ लोगों को नागवार गुज़री। कुछ लोगों ने उनके खिलाफ साजिशें शुरू कर दीं। कई लोग मिलकर हाजी मोख्तार को बदनाम करने और हॉस्पिटल के कामकाज को रोकने की कोशिशें शुरू कर दीं।

हॉस्पिटल को कमजोर करने की लगातार कोशिशें की गई। सचिव तारिक ने जानबूझकर हॉस्पिटल का अकाउंट बंद करवा दिया, जिसमें करीब 2.5 करोड़ रुपये थे। इसका सीधा असर हॉस्पिटल के काम पर पड़ा।

इन लोगों के द्वारा नगर निगम में झूठी शिकायतें कराई गईं कि हॉस्पिटल में वॉटर हार्वेस्टिंग नहीं है। नोटिस आने के बाद, फंड की कमी के बावजूद हॉस्पिटल प्रबंधन ने तुरंत यह सुविधा लगवाई।
सचिव तारिक और उनके समर्थकों ने षड्यंत्र के तहत हॉस्पिटल की आयुष्मान भारत योजना को बंद करवा दिया। इससे सैकड़ों गरीब मरीजों को नुकसान हुआ। बाद में, हाजी मोख्तार अंसारी ने व्यक्तिगत प्रयासों से इसे फिर से चालू करवाया।
विरोधियों ने फिर सरकारी अफसरों से मिलकर फायर सेफ्टी की कमी की शिकायत करवाई। फंड की दिक्कत के बावजूद हॉस्पिटल ने यह व्यवस्था भी पूरी कर ली।
पुरानी कमिटी ने पहले अपने करीबी का लैब मात्र एक लाख रुपये सालाना पर दिया था। नई कमिटी ने जब मरीजों को छूट देने को कहा, तो लैब मालिक ने मना कर दिया।
तब हाजी मोख्तार ने फैसला लिया कि हॉस्पिटल का खुद का पैथोलॉजी लैब होगा। अब हॉस्पिटल की अपनी लैब 40% तक डिस्काउंट देती है और उसकी रिपोर्टें पहले से कहीं अधिक सटीक हैं।
जब हाजी मोख्तार ने हॉस्पिटल के विस्तार के लिए रांची के सांसद संजय सेठ को आमंत्रित किया, तो उन्होंने 1.20 करोड़ रुपये की मदद का आश्वासन दिया था। लेकिन सचिव और उनके पीछे काम करने वाले लोगों ने विरोध कर सांसद को आने से रोक दिया। इससे हॉस्पिटल को बड़ा नुकसान हुआ।
हाजी मोख्तार की टीम ने हॉस्पिटल की अपनी फार्मेसी खोलने की पहल की मगर सचिव तारिक ने ड्रग लाइसेंस रुकवाने की कोशिश की थी। हाजी मोख्तार अंसारी ने अपने टीम के साथ मिलकर सचिव के चाल को नाकामयाब किया और हॉस्पिटल में अंजुमन का फार्मेसी खोलने में कामयाब रहे। आज हॉस्पिटल के फार्मेसी से सालाना एक करोड़ की आमदनी है।
इसी तरह नई OPD बिल्डिंग के उद्घाटन रोका गया। जब हॉस्पिटल ने अपनी पांच मंज़िला नई OPD बिल्डिंग तैयार की और स्वास्थ्य मंत्री डॉ. इरफ़ान अंसारी को उद्घाटन के लिए बुलाया गया, तो विरोधियों ने मंत्री को आने से मना कर दिया। अगर मंत्री आते, तो निश्चित रूप से हॉस्पिटल को और सहयोग मिलता।
विरोधियों ने सोशल मीडिया पर हाजी मोख्तार के खिलाफ झूठा प्रचार शुरू किया। उन्हें अपशब्द कहे गए, उनके परिवार को निशाना बनाया गया। लेकिन उन्होंने हमेशा संयम बनाए रखा और किसी को जवाब नहीं दिया। उनका ध्यान सिर्फ एक लक्ष्य पर रहा हॉस्पिटल की तरक्की और विकास।

सारी रुकावटों के बावजूद आज अंजुमन इस्लामिया हॉस्पिटल लगातार आगे बढ़ रहा है पहले जहाँ 87 स्टाफ थे, अब 180 स्टाफ हैं। डॉक्टरों की संख्या 30 से बढ़कर 40 हो गई है।
हर भर्ती मरीज को तीन दिन तक मुफ्त खाना दिया जाता है।
मरीजों को इलाज में डिस्काउंट मिलता है।
हॉस्पिटल की साफ-सफाई, कैंटीन और काउंसलिंग व्यवस्था पहले से बेहतर है।

हाजी मोख्तार अंसारी और उनकी टीम ने हर मुश्किल का सामना धैर्य और समझदारी से किया। उनके नेतृत्व में हॉस्पिटल लगातार आगे बढ़ रहा है और गरीबों के इलाज का एक भरोसेमंद केंद्र बन चुका है।

अंजुमन इस्लामिया हॉस्पिटल आज इस बात की मिसाल है कि अगर नीयत साफ हो और हौसला मजबूत, तो साजिशें भी तरक्की की राह नहीं रोक सकतीं।

अफ़रोज़ आलम अंसारी

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