युवा लेखक डॉ. साबिर अंसारी के उपन्यास ‘ख्वाब या हकीकत?’ का विमोचन


मंत्री हफीजुल हसन बोले– ग्रामीण परिवेश की समस्याओं का समाधान ही सच्चा रोजगार
इबरार अहमद ने कहा: ”यह रचना समाज का आईना है’
प्रोफेसर डॉक्टर धर्मेंद्र कुमार सिंह ने कहा: समाज बुरे लोगों से ख़राब नही होता बल्कि अच्छे लोगों की निष्क्रियता से ख़राब होता है।

राँची, रविवार (14 दिसंबर 2025): मौलाना आजाद ह्यूमेन इनिशिएटिव (“माही”) द्वारा आयोजित एक भव्य समारोह में युवा लेखक और मारवाड़ी कॉलेज, राँची के उर्दू विभाग से जुड़े डॉ. मोहम्मद साबिर अंसारी के दूसरे उपन्यास “ख्वाब या हकीकत?” का विमोचन और साहित्यिक चर्चा सफलतापूर्वक संपन्न हुई। गुलशन मैरेज हॉल, कर्बला चौक, राँची के ख़लील अहमद मंच में आयोजित इस कार्यक्रम में झारखंड के सामाजिक और साहित्यिक जगत की कई प्रमुख हस्तियाँ शामिल हुईं।
विमोचित उपन्यास “ख्वाब या हकीकत?” गोड्डा के रानीडीह गाँव के मूल निवासी डॉ. साबिर अंसारी की कलम से निकली है, जिसमें पिछड़े वर्गों, किसानों, मजदूरों और विशेषकर शोधार्थियों की समस्याओं और मौजूदा शैक्षणिक ढाँचे की सच्चाई को दर्शाया गया है।

कार्यक्रम की शुरुआत मरियम फ़ातिमा ने पवित्र क़ुरान के पाठ से की, उसके उपरांत रेहाना परवीन ने नज़्म एवं लेखक डॉक्टर साबिर अंसारी ने स्वागत भाषण देते हुए अपनी उपन्यास ख़्वाब या हक़ीक़त का परिचय और समर्पण पर चर्चा किया।
प्रथम सत्र: ग्रामीण संघर्ष और रोजगार की चुनौती
प्रथम सत्र में उपन्यास का *विमोचन किया गया। इस सत्र में अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री श्री हफीजुल हसन मुख्य अतिथि थे और मौलाना तहज़ीबुल हसन, मौलाना तल्हा नदवी, अल्पसंख्यक आयोग के उपाध्यक्ष प्रणेश सॉलोमन, अल्पसंख्यक आयोग के सदस्य इक़रारुल हसन आदि विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित थे।
मुख्य अतिथि श्री हफीजुल हसन, अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री, ने उपन्यास में उजागर ग्रामीण परिवेश की कठिनाइयों और रोजगार के संबंध में महत्वपूर्ण टिप्पणी की। उन्होंने कहा, “डॉ. साबिर अंसारी ने ग्रामीण भारत की नब्ज को पकड़ा है। उपन्यास में जिन किसानों और मजदूरों के संघर्ष का चित्रण है, वह हमारे राज्य की एक बड़ी आबादी की वास्तविकता है। सच्चा रोजगार केवल सरकारी नौकरी नहीं है, बल्कि ग्रामीण परिवेश में अवसरों का सृजन करना है ताकि हमारे युवा अपने गाँव, अपनी मिट्टी से दूर न हों।” उन्होंने आगे कहा, *’ख्वाब या हकीकत?’ हमें याद दिलाता है कि जब तक हम पिछड़े वर्गों और ग्रामीण क्षेत्रों की शैक्षणिक और आर्थिक विषमताओं को दूर नहीं करेंगे, तब तक रोजगार का सपना महज ख्वाब ही रहेगा। हम इस सामाजिक दस्तावेज से प्रेरणा लेकर अपनी नीतियों में सुधार करेंगे।”
माही के संयोजक व झारखण्ड वक़्फ़ बोर्ड के सदस्य इबरार अहमद ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा, “यह उपन्यास वर्तमान शैक्षणिक ढाँचे की कड़वी सच्चाई को दर्शाता है और यह बताता है कि आज भी ग्रामीण और पिछड़े पृष्ठभूमि के छात्रों को कितनी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इन्होंने अपनी उपन्यास में हल जोतते हुए बैलों की, मुर्गों की बांग की, पुराने बरगद के दरख़्त की और उसके नीचे लिए जाने वाली सामाजिक फैसले की, कच्चे-पक्के मकानों और ईंट भट्ठों में काम करने वाली औरतों व बच्चों की बड़े ही खूबसूरती से चर्चा कर भावनाओं की ज़िंदगी का ऐहसास दिलाया है जो बहुत ही सुंदर समावेश है। ‘ख्वाब या हकीकत?’ सिर्फ एक किताब नहीं है, यह हमारे समाज का आईना है।*”
आगे उन्होंने विशेष रूप से शोधार्थियों के जीवन पर केंद्रित समस्याओं को उजागर करने के लिए लेखक की सराहना की।
द्वितीय सत्र: उपन्यास एक सामाजिक दस्तावेज
दूसरे सत्र में लेखक के दोनों उपन्यासों— दीवार के उस पार और ‘ख्वाब या हकीकत?’*—पर गहन साहित्यिक चर्चा हुई।
राँची विश्विद्यालय के कुलपति प्रोफेसर (डॉ.) धर्मेंद्र कुमार सिंह ने लेखक के दृष्टिकोण की प्रशंसा करते हुए कहा, डॉ. साबिर अंसारी ने गरीबी और सामाजिक असमानता को उच्च शिक्षा और शोध के मार्ग में खड़ी होने वाली दीवार के रूप में पेश किया है। यह रचना हमें शिक्षा के उद्देश्यों पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर करती है।” समाज बुरे लोगों से ख़राब नही होता बल्कि अच्छे लोगों की निष्क्रियता से ख़राब होता है। निष्क्रियता छोड़कर हमें सामाजिक सजकता व जागरूकता के लिए प्रयत्नशील होने की आवश्यकता है तब जाकर हम यथार्थ विकास की ओर अग्रसर होंगे।
मारवाड़ी कॉलेज के प्राचार्य डॉ. मनोज कुमार ने कहा, “डॉ. साबिर अंसारी की लेखनी में परिपक्वता है। उन्होंने झारखंडी मिट्टी की खुशबू को राष्ट्रीय साहित्यिक पटल तक पहुँचाया है और वह साहित्य के माध्यम से सामाजिक परिवर्तन के वाहक बनेंगे।”
प्रथम सत्र के मंच का संचालन शायर सोहैल सईद ने एवं द्वितीय सत्र के मंच का संचालन एडिटर्स पोस्ट के चीफ एडिटर व माही के प्रवक्ता मुस्तक़ीम आलम और धन्यवाद ज्ञापन रिसर्च स्कॉलर शाहिना परवीन ने किया।
कार्यक्रम में मुख्य रूप से अल्पसंख्यक आयोग के उपाध्यक्ष श्री प्रणेश सोलोमन, मारवाड़ी कॉलेज के उर्दू विभागाध्यक्ष प्रोफेसर फ़रहत आरा, शायर नसीर अफ़सर, डॉक्टर हिदायतउल्लाह, एज़ाज़ अहमद, फ़ारूक इंजीनियर, अंजुमन इस्लामिया राँची के महासचिव डॉक्टर तारिक़, इदरिसिया पंचायत के मोहम्मद इस्लाम, फ़रोगे उर्दू के अध्यक्ष मोहम्मद इक़बाल, अशफ़ाक़ गुड्डू, मेराज़ गद्दी, जमीयतुल इराक़ीन के महासचिव सैफुल हक़, मिल्लत पंचायत के सदर जावेद अहमद, इंजीनियर शफीउद्दीन, शकील अहमद, मोहम्मद सलाहउद्दीन, शोएब रहमानी, डॉक्टर सैय्यद मेराज़ हसन, शकील अख़्तर, सहित कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।








