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उम्मीद पोर्टल पर वक़्फ़ सम्पत्ति दर्ज कराने में लापरवाही, झारखंड वक़्फ़ बोर्ड की नाकामी पर उठ रहे सवाल

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——– गुलाम शाहिद निदेशक जोहार समाचार-सह – – – –
झारखंड सुन्नी वक्फ बोर्ड इन दिनों जिस तरह काम कर रहा है, उसे देख यह कहना गलत नहीं होगा कि व्यवस्था चरमराई नहीं—पूरी तरह ठप हो चुकी है। राज्यभर में वक्फ संपत्तियों को उम्मीद पोर्टल पर अपलोड कराने को लेकर हड़कंप मचा हुआ है, लेकिन बोर्ड के जिम्मेदारों के कान पर जूं तक नहीं रेंग रही। ऊपर से बोर्ड के चेयरमैन दिल्ली में चैन की नींद सो रहे हैं और झारखंड सिर्फ ‘औपचारिकता’ निभाने आते हैं—न निरीक्षण, न समीक्षा, न समाधान। सवाल यह है कि आखिर इस उदासीनता की कीमत कब तक अल्पसंख्यक समुदाय चुकाता रहेगा?वक्फ बोर्ड का रवैया ऐसा प्रतीत होता है मानो उसे वक्फ संपत्तियों के रख-रखाव, उनकी सुरक्षा या विवादित जायदादों की रक्षा से कोई लेना-देना नहीं। अंशदान की राशि चाहिए—यह प्राथमिकता है; लेकिन यह धन कहां खर्च हो रहा है, इसका हिसाब देने की किसी को जरूरत महसूस नहीं हो रही। राज्यभर से शिकायतें तो आती हैं, पर समाधान कभी नहीं आता। क्या वक्फ बोर्ड सिर्फ वसूली का दफ्तर बनकर रह गया है?
अल्पसंख्यक समुदाय में निराशा गहराती जा रही है। वक्फ संपत्तियों पर अतिक्रमण बढ़ रहा है, जागरूकता नाम की चीज़ गायब है, और न्यायिक मामलों में पीड़ितों को पुख्ता सहयोग तक नहीं मिल रहा। इसी बीच उम्मीद पोर्टल की जल्दबाज़ी और अव्यवस्था ने तेल में आग लगाने का काम किया है। आवश्यक प्रशिक्षण और मार्गदर्शन के बिना पोर्टल की समयसीमा थोप देना क्या प्रशासनिक असंवेदनशीलता का सर्वोच्च उदाहरण नहीं?
राज्यभर के मुतवल्ली और प्रतिनिधि साफ शब्दों में मांग कर रहे हैं—जागरूकता अभियान तुरंत शुरू हो,उम्मीद पोर्टल की अंतिम तिथि बढ़ाई जाए,
और जमीन पर काम को प्राथमिकता मिले, न कि कागज़ों में।अगर वक्फ बोर्ड अभी भी नहीं जागा तो गंभीर संकट सिर्फ संपत्तियों पर नहीं, बल्कि वक्फ संस्थान की विश्वसनीयता पर भी आएगा। और इसकी पूरी जिम्मेदारी वक्फ बोर्ड प्रशासन पर ही होगी—क्योंकि यह लापरवाही नहीं, बल्कि एक संस्थागत विफलता की तस्वीर है।झारखंड के वक्फ मामलों में आज सबसे बड़ा सवाल यही है:
क्या वक्फ बोर्ड अब भी जागेगा, या अल्पसंख्यक समुदाय की आवाज फिर हवा में खो जाएगी?

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