काले कानून की वापसी तक सभी वर्गों का एकजुट होकर लगातार विरोध और असंतोष जताना जरूरी है: मुफ्ती मोहम्मद अनवर कासमी, रांची


ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रस्ताव पर इमारत-ए-शरीया के तत्वावधान में 29 जून को पटना के गांधी मैदान में “वक़्फ़ बचाओ, संविधान बचाओ” कॉन्फ्रेंस का आयोजन
रांची, 27 मई 2025
इमारत-ए-शरीया बिहार, ओडिशा, झारखंड और पश्चिम बंगाल के अंतर्गत दारुलक़ज़ा, करबला टैंक रोड, रांची के काज़ी-ए-शरीयत मुफ़्ती मोहम्मद अनवर कासमी ने अपने एक प्रेस बयान में कहा कि वक़्फ़ एक ऐसी इस्लामी इबादत है, जिससे सिर्फ़ मुसलमान ही नहीं, बल्कि अन्य धर्मों के लोग भी लाभान्वित होते रहे हैं। वक़्फ़ की संपत्तियों पर बने मदरसे, स्कूल, कॉलेज और यूनिवर्सिटीज़ से जहाँ मुसलमानों को शिक्षा मिलती है, वहीं अन्य समुदायों के लोगों ने भी इन संस्थानों से ज्ञान अर्जित किया है।
भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने अपनी प्रारंभिक उर्दू-फ़ारसी की शिक्षा एक वक़्फ़ मदरसे से प्राप्त की थी। देश को परमाणु शक्ति के रूप में पहचान दिलाने वाले और ग्यारहवें राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने भी वक़्फ़ की संस्था में शिक्षा प्राप्त की थी। ऐसी मिसालों की एक लंबी श्रृंखला है जो आज भी जारी है।
मुफ़्ती अनवर कासमी ने कहा कि सरकार द्वारा लागू किया गया वक़्फ़ संशोधन कानून न केवल इस्लामी शरीअत का उल्लंघन है, बल्कि यह भारतीय संविधान की आत्मा और अनुच्छेद 13, 14, 25 और 26 समेत मौलिक अधिकारों के खिलाफ़ है। इस काले कानून के लागू होने से मस्जिदें, मदरसे, स्कूल-कॉलेज, धार्मिक स्थल, इमामबाड़े, ईदगाहें और क़ब्रिस्तान गंभीर संकट में हैं।
इस गंभीर स्थिति को देखते हुए, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, देश की प्रमुख मिल्ली तंजीमों और खानक़ाहों की संयुक्त प्रस्ताव पर, इमारत-ए-शरीया के ज़रिए 29 जून 2025, दिन रविवार, सुबह 11 बजे पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में “वक़्फ़ बचाओ, संविधान बचाओ” के उनवान पर एक विशाल जनसभा/कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया जा रहा है। इसकी क़ियादत हज़रत अमीर-ए-शरीअत मौलाना सैयद अहमद वली फैसल रहमानी (मद्ज़िल्लु) करेंगे।
इस ऐतिहासिक विरोध सभा में देश भर के धार्मिक संगठनों रहनुमा , इस्लामी विद्वान, क़ानून विशेषज्ञ और बुद्धिजीवी संबोधित करेंगे। इस अवसर पर वक़्फ़ और संविधान की रक्षा के लिए एक संयुक्त और संगठित रुख़ भी प्रस्तुत किया जाएगा।
मुफ़्ती साहब ने देश के तमाम सम्मानित नागरिकों और विशेष रूप से मुस्लिम समुदाय के हर तबक़े से दर्दमंदाना अपील की है कि वे अपनी धार्मिक पहचान और वक़्फ़ की जायदाद की रक्षा के लिए इस ऐतिहासिक सम्मेलन में लाखों की संख्या में शरीक होकर शांतिपूर्ण विरोध दर्ज कराएं, और इन नाज़ुक हालात में अपने दीन और मिल्लत की जागरूकता का प्रमाण दें।
उन्होंने यह भी कहा कि अल्लाह ने चाहा तो यह सभा हमारी संवैधानिक, धार्मिक और सामूहिक अस्तित्व की रक्षा की जद्दोजहद का एक ऐतिहासिक पड़ाव साबित होगी।
इमारत-ए-शरीया के अमीर-ए-शरीअत की क़ियादत में इसके सभी ज़िम्मेदार, क़ाज़ी, कार्यकर्ता, मुबल्लिग़ और सारे लोग इस आंदोलन में पहले दिन से सक्रिय हैं। उनकी कोशिशों का ही नतीजा है कि अब तक देशभर में दर्जनों धरने, जुलूस, रैलियाँ और विरोध सभाएँ आयोजित की जा चुकी हैं, जिनमें लाखों लोगों की भागीदारी रही है।

