जश्न ए ईद मिलादुन्नबी कल, मिलजुलकर जुलूस ए मोहम्मदी में शामिल हों नबी के दीवाने: मौलाना बरकाती
रांची। आका पैगंबर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के यौमे पैदाइश के दिन पूरे देश भर में
जश्न ए ईद मिलादुन्नबी 12 रबि उल अव्वल यानी 16 सितंबर को मनाया जायेगा। ईद- ए- मिलादुन्नबी का मतलब ही है हज़रत मुहम्मद सल. का जन्म। उक्त बातें कांटा टोली कुरैशी मुहल्ला जामा मस्जिद के इमाम ओ खतिब मौलाना मंजूर हसन बरकाती ने कही। उन्होंने आका पैगंबर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के जीवन और उनके बताये हुए अनमोल बातों से लोगों को अवगत कराया, कहा कि एकलाख, मुहब्बत और भाईचारगी तभी कायम है जब आप आपस में मिलजुलकर रहते हैं, आपकी यही ताकत भी है और पहचान भी। वो इंसान या वो कौम कभी तरक्की नहीं कर सकता जो मिलजुलकर नहीं रहते। नफरत पैदा करने वाले से पैगंबर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हमेशा नाराज रहते हैं। जुलूस ए मोहम्मदी कांटा टोली कुरैशी मुहल्ला से जैसे वर्षों से सभी मिलकर जुलकर निकलते थे उसी तरह से इस बार भी निखिला जायेगा।
ईद- ए- मिलादुन्नबी का महत्व:
इस्लाम के संस्थापक पैगंबर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का जन्मदिन हिजरी रबीउल अव्वल महीने की 12 तारीख को मनाया जाता है। 571 ईस्वीं को साउदी शहर मक्का में पैगंबर साहब हज़रत मुहम्मद सल्ल. का जन्म हुआ था।
आप सल्ल. के वालिद साहब का नाम अब्दुल्ला बिन अब्दुल्लाह मुतलिब था और वालिदा का नाम आमना था। मुहम्मद सल्ल. के पिता का इंतकाल उनके जन्म के 2 माह बाद ही हो गया था। ऐसे में उनका लालन-पालन उनके चाचा अबू तालिब ने किया।
इबादत और इलहाम :
आप सल्ल. अलै. बचपन से ही अल्लाह की इबादत में लगे रहते थे। आपने कई दिनों तक मक्का की एक पहाड़ी ‘अबुलुन नूर’ पर इबादत की। 40 वर्ष की अवस्था में आपको अल्लाह की ओर से संदेश (इलहाम) प्राप्त हुआ। अल्लाह ने फरमाया, ये सब संसार सूर्य, चांद, सितारे मैंने पैदा किए हैं। मुझे हमेशा याद करो। मैं केवल एक हूं। मेरा कोई मानी-सानी नहीं। लोगों को समझाओ। हज़रत मोहम्मद सल्ल. अलै. ने ऐसा करने का अल्लाह को वचन दिया, तभी से उन्हें नबूवत प्राप्त हुई।
कुरैशी मुहल्ला से निकलेगा जुलूस:
पिछले करीब 68 से 70 वर्षों से लगातार या यूं कहा जाये जश्ने ईद- ए- मिलाद- उन-नबी के दिन जुलूस ए मोहम्मदी निकालने की शुरुआत झारखंड प्रदेश जमीयतुल कुरैश के अंतर्गत संचालित जमीयतुल कुरैश पंचायत के लोगों ने की थी। शुरुआत में कांटा टोली कुरैशी मुहल्ला से निकल कर इदरीश काॅलोनी, फिर कांटा टोली चौक तक इसके कुछ सालों बाद कांटा टोली कुरैशी मुहल्ला से कांटा टोली चौक , पत्थलकुदवा, गुदरी, कर्बला चौक, से मेन रोड होते शहीद अल्बर्ट एक्का चौक तक जाते थे, फिर सर्जना चौक होते हुए वापिस कांटा टोली लौटते थे, नब्बे के दशक में शहीद अल्बर्ट एक्का चौक न जाकर कर्बला चौक होते हुए सैनिक मार्केट में सब जमा होते थे फिर हज़रत कुतुबुद्दीन रिसालदार बाबा के दरगाह जाते, यहां उर्स मैदान में भव्य जुलूस जनसभा में तब्दील हो जाता है। यहां तकरीर के आयोजन के बाद सब शांतिपूर्ण तरीके से अपने निर्धारित मार्ग से सभी अपने घर वापिस लौटते हैं। कांटा टोली कुरैशी मुहल्ला से जुलूस ए मोहम्मदी निकाले जाने का सिलसिला आज भी जारी है। जुलूस ए मोहम्मदी निकालने से पहले जमीयतुल कुरैश पंचायत द्वारा संचालित मदरसा फैजउल अनवार के छात्रों को मदरसा से निकालकर पोस्टर बैनर , झंडे के साथ वाईएमसीए होते हुए पेट्रोल पंप टाटा रोड से सुल्तान कालोनी पुल तक फिर वापिस मदरसा फैज उल अनवार आते हैं करीब एक घंटे तक यह कार्यक्रम चलता है जो पुरानी परंपरा का हिस्सा है। इस मौके पर जमीयतुल कुरैश पंचायत के सभी पदाधिकारी, सदस्य, इमाम, मोआज्जीन एवं अन्य लोग शामिल होते हैं।