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सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर इमारत शरिया प्रमुख की राय, सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का सम्मान, लेकिन पूर्ण न्याय अभी बाकी

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सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर इमारत शरिया प्रमुख की राय…. सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का सम्मान, लेकिन पूर्ण न्याय अभी बाकी…. वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 की पूर्ण रद्दीकरण तक संघर्ष जारी रहेगा : अमीर शरीयत…..

रांची : वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 को सरकार द्वारा पूरे देश में लागू किए जाने के बाद, देश के विभिन्न संगठनों और व्यक्तियों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर कीं और दावा किया कि यह कानून भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25, 26 और 30 आदि का उल्लंघन करता है क्योंकि यह वक्फ को उसकी मूल इस्लामी और कानूनी स्थिति से वंचित करता है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 पर पूर्ण रोक नहीं लगाई, बल्कि कुछ महत्वपूर्ण धाराओं पर अंतरिम आदेश जारी किया है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि
(1) वक्फ बनाने के लिए पांच साल से मुस्लिम होने की शर्त अभी लागू नहीं होगी क्योंकि इसका सत्यापन करने का कोई तंत्र मौजूद नहीं है। इसलिए, जब तक राज्य सत्यापन का तंत्र विकसित नहीं करते, तब तक इस शर्त को निलंबित रखा जाएगा। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट पांच साल से मुस्लिम होने की शर्त लगाने के पक्ष में है, जो पूरी तरह से अन्यायपूर्ण है।
(2) वक्फ संपत्ति और सरकार के बीच विवाद से संबंधित धाराओं पर भी कोर्ट ने रोक लगा दी और स्पष्ट किया कि भूमि या संपत्ति के अधिकारों का फैसला प्रशासन नहीं, बल्कि केवल कोर्ट या ट्रिब्यूनल ही कर सकता है। कलेक्टर को संपत्ति के अधिकारों का फैसला करने का अधिकार देना शक्तियों के पृथक्करण का उल्लंघन है। इसलिए, जब तक ट्रिब्यूनल या हाई कोर्ट फैसला नहीं करता, तब तक किसी भी वक्फ संपत्ति को न तो छीना जाएगा और न ही इसके दस्तावेजों में कोई बदलाव किया जाएगा।
(3) गैर-मुस्लिम सदस्यों के मामले में कोर्ट ने कहा कि केंद्रीय वक्फ परिषद में अधिकतम चार और राज्य वक्फ बोर्ड में अधिकतम तीन गैर-मुस्लिम रखे जा सकते हैं, जबकि बोर्ड का मुख्य कार्यकारी अधिकारी यथासंभव मुस्लिम ही होना चाहिए।
(4) पंजीकरण की शर्त को बरकरार रखा गया है क्योंकि यह पहले से मौजूद थी। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ये सभी निर्देश केवल अस्थायी हैं और अंतिम सुनवाई तक दोनों पक्षों को अपने तर्क प्रस्तुत करने का पूरा अवसर दिया जाएगा।
कोर्ट के इन अंतरिम निर्देशों के बावजूद, अधिनियम की अधिकांश धाराएं लागू हैं और वे वक्फ के लिए गंभीर खतरा बन चुकी हैं।
धारा 107 के तहत लिमिटेशन एक्ट 1963 लागू हो गया है, जिसके परिणामस्वरूप पुराने अवैध कब्जों को वापस लेना लगभग असंभव हो जाएगा, जबकि शरीयत में कब्जा चाहे सौ साल पुराना हो, अवैध ही रहता है।
धारा 40 को समाप्त करके वक्फ बोर्ड से संपत्ति के वक्फ होने या न होने की जांच का अधिकार छीनकर प्रशासन को दे दिया गया है।
पंजीकरण और सर्वेक्षण का अधिकार अब कलेक्टर के पास है, जिससे प्रारंभिक चरण में ही पंजीकरण के दरवाजे बंद हो सकते हैं। AMASR कानून के तहत यदि कोई प्राचीन मस्जिद या कब्रिस्तान संरक्षित स्मारक घोषित हो जाता है, तो उसकी वक्फ की स्थिति स्वतः समाप्त हो जाएगी।
देशभर की जमीनी हकीकत यह है कि सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार 58,929 वक्फ संपत्तियों पर अवैध कब्जे या विवाद हैं। कर्नाटक में चार हजार से अधिक मामले दर्ज हुए, लेकिन केवल 371 एकड़ जमीन ही वापस ली जा सकी। बिहार में 2900 पंजीकृत संपत्तियों में से 350 पर कब्जे के मामले सुनवाई के अधीन हैं। पश्चिम बंगाल में 80,000 से अधिक संपत्तियां पंजीकृत हैं, जिनमें हजारों पर अवैध कब्जे हैं। ये आंकड़े दर्शाते हैं कि पुराने कानून 1995 (संशोधन 2013) के बावजूद कार्यान्वयन बहुत कमजोर रहा। जब एक अपेक्षाकृत बेहतर कानून लागू नहीं हो सका, तो वर्तमान संदिग्ध कानून के परिणामों का अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है।
इस पृष्ठभूमि में जरूरी है कि वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 को पूरी तरह रद्द किया जाए क्योंकि यह संविधान के मूल अधिकारों से टकराता है। इसके बाद वक्फ अधिनियम 1995 (संशोधन 2013) के आधार पर एक नया ढांचा बनाया जाए और इसे और मजबूत किया जाए।
वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष का चयन राजनीतिक नियुक्ति के बजाय मुसलमानों के प्रत्यक्ष प्रतिनिधित्व से हो, जैसा कि सिखों के SGPC मॉडल में होता है।
कब्जा हटाने के लिए बोर्डों को तत्काल और व्यावहारिक अधिकार दिए जाएं, जैसा कि हिंदू धार्मिक संस्थानों के कानूनों (केरल, तमिलनाडु और कर्नाटक) में बोर्डों को त्वरित बेदखली (जिसमें लंबी सुनवाई या सबूतों की आवश्यकता नहीं होती, बल्कि सीधे आदेश से कब्जा हटाया जा सकता है) का अधिकार प्राप्त है।
वक्फ संपत्तियों को निजी या राजनीतिक लाभ के लिए उपयोग करने वालों के खिलाफ कठोर दंडात्मक सजा निर्धारित की जाए ताकि इस पवित्र अमानत की सुरक्षा सुनिश्चित हो।
यह समझना जरूरी है कि सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम निर्देश अस्थायी राहत जरूर हैं, लेकिन वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 अपनी वर्तमान स्थिति में वक्फ को कमजोर करता है। यदि यही प्रवृत्ति जारी रही, तो आने वाले वर्षों में खतरा है कि वक्फ संपत्तियां कागजी रिकॉर्ड तक सीमित हो जाएंगी और जमीन पर उनका अस्तित्व धीरे-धीरे खत्म हो जाएगा। हम सभी नागरिकों, विशेष रूप से मुसलमानों से अपील करते हैं कि इस गंभीर मुद्दे को समझें, संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए एकजुट हों और एक मजबूत कानूनी और व्यावहारिक संघर्ष के लिए तैयार रहें।
अमरात शरीयत बिहार, ओडिशा और झारखंड, पहले दिन से ही अमीर शरीयत हजरत मौलाना अहमद वली फैसल रहमानी साहब के नेतृत्व में सभी राष्ट्रीय संगठनों के गठबंधन के साथ वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 के खिलाफ एक संगठित आंदोलन चला रही है। हर खास-ओ-आम इस आंदोलन से जुड़कर आवाज बुलंद कर रहा है। वक्फ संपत्तियों की सुरक्षा और वक्फ अधिनियम के खिलाफ गांधी मैदान में उमड़ा जनसैलाब इसका जीता-जागता सबूत है। अमरात शरीयत सभी लोगों का आभार व्यक्त करती है और आश्वासन देती है कि वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 की पूर्ण रद्दीकरण तक संघर्ष निरंतर जारी रहेगा।

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