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मौलाना अबुल कलाम आजाद के साथ सरकारी भेदभाव दुर्भाग्यपूर्ण : शमीम अख्तर आजाद

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मौलाना अबुल कलाम आजाद के साथ सरकारी भेदभाव दुर्भाग्यपूर्ण : शमीम अख्तर आजाद अध्यक्ष रांची जिला मोमिन कॉन्फ्रेंस, भारत के प्रथम शिक्षा मंत्री और महान स्वतंत्रता सेनानी मौलाना अबुल कलाम आजाद की आज जयंती है शिक्षा के प्रति उनकी सोच और तालिमी विरासत आज भी प्रेरणा देती। मौलाना आजाद ने देश की आजादी के साथ-साथ बौद्धिक विकास का सपना देखा था।अंग्रेजी शासन द्वारा 1916 से 1919 तक रांची के बिरसा मुंडा जेल में नजरबंदी के दौरान उन्होंने शिक्षा के प्रचार प्रसार को अपना मुख्य उद्देश्य बनाया था। नजरबंदी के दौरान यहां के मुसलमान की शैक्षणिक स्थिति को देखते हुए उन्होंने मदरसा इस्लामिया और अंजुमन इस्लामिया रांची की स्थापना की थी जो आगे चलकर शिक्षा का केंद्र बन गया उस दौर में मौलाना आजाद अपर बाजार स्थित जामा मस्जिद में नियमित रूप से खुत्बा (भाषण) दिया करते उनके खुतबे को न केवल मुस्लिम बल्कि आसपास के हिंदू बिरादरी के लोग भी सुनने के लिए आते थे ।स्वतंत्र भारत के प्रथम शिक्षा मंत्री बनने के बाद उन्होंने आधुनिक और समावेशी शिक्षा व्यवस्था की नींव रखी, आज देश में जो भी शैक्षणिक संस्थान और एकता की मिसाल जल रहे हैं उनमें मौलाना आजाद का विचारधारा का प्रभाव झलकता है, मौलाना आजाद लाइब्रेरी, मौलाना आजाद कॉलेज, कोचिंग सेंटर एवं अंजुमन इस्लामिया छात्रों के लिए एक शैक्षणिक मंच तैयार कर रहा है जहां युवाओं को आधुनिक शिक्षा और सामाजिक जिम्मेदारी का एहसास कराया जाता है ।
परंतु खेतपूर्वक कर कहना पड़ रहा है की मौलाना आजाद एवं उनकी विचारधारा सरकारी उपेक्षा का शिकार हो गया ।आज महागठबंधन की सरकार विभिन्न योजनाओं में पानी की तरह पैसा बहा रही है लेकिन मौलाना आजाद की विरासत को संभाल ने में रत्ती भर भी सहयोग नहीं कर रही । कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि महान स्वतंत्रता सेनानी एवं देशभक्त प्रथम शिक्षा मंत्री मौलानाआजाद का उपेक्षा का कारण मुस्लिम होना हो सकता है।

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