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एक साथ लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव कराने से विकास की रफ्तार होगी तेज :: अशोक कुमार सिंह

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विशेष संवाददाता द्वारा

बख्तियारपुर (पटना)। क्षेत्र के जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता व करनौती ग्राम के प्रगतिशील किसान अशोक कुमार सिंह ने कहा है कि देश में लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जाने से विकास योजनाओं की रफ्तार तेज होगी और राष्ट्र के सशक्तिकरण को बढ़ावा मिलेगा। उन्होंने कहा कि वन नेशन वन, इलेक्शन


की अवधारणा को लेकर राजनीतिक दलों के नेताओं और बुद्धिजीवियों में बहस छिड़ी हुई है। इस मुद्दे पर सत्ता पक्ष और विपक्ष द्वारा अपने-अपने नजरिए से आकलन करते हुए बयानबाजी की जा रही है। उन्होंने कहा कि यदि सभी चुनाव एक साथ या एक वर्ष में संपन्न करा लिए जाएं, तो कम से कम चुनाव के बाद अगले चार वर्षों तक सभी सरकारों और राजनीतिक दलों को अपने एजेंडा के अनुरूप काम करने का पर्याप्त अवसर मिलेगा।
श्री सिंह ने कहा कि आजादी के बाद चार बार यानी 1952, 1957, 1962 और 1967 में लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव देश में एक साथ ही हुए थे। वर्ष 1967 में चौथे आम चुनाव के बाद आठ राज्यों, बिहार, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, पंजाब, तमिलनाडु, केरल और ओडिशा की विधानसभा में कांग्रेस पार्टी को बहुमत नहीं मिला और संयुक्त विधायक दलों (संविद) की गैर कांग्रेसी सरकारें बनी थी। यह देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था के एक नए स्वरूप के तौर पर उभर कर आया था।
लेकिन कालांतर में राज्यों में संविद सरकारों में शामिल घटक दलों में समन्वय स्थापित नहीं होने के कारण उन राज्यों की सरकारें दल-बदल और अस्थिरता का शिकार हो गई। यहीं से मध्यावधि चुनाव का दौरा शुरू हुआ और लोकसभा- विधानसभाओं के चुनाव अलग-अलग होने लगे।
गौरतलब है कि आजादी के बाद वर्ष 1950 में संवैधानिक लोकतंत्र में संसाधनों का घोर अभाव था, बावजूद इसके चुनाव आयोग ने एक साथ लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव सफलतापूर्वक संपन्न कराए।
वर्तमान में चुनाव आयोग के पास पर्याप्त संसाधन, नई तकनीक अनुभव आदि से संपन्न टीम है। यदि देश में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ कराए जाते हैं तो यह विधायिका को स्थायित्व देगा। इससे हमारे जनप्रतिनिधियों को काफी राहत पहुंचेगी और वह चुनाव के बाद अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्र में विकास पर अधिक ध्यान देने में सक्षम हो सकेंगे। देश में लोकसभा,विधानसभाओं, नगर पालिकाओं, पंचायतों के चुनाव होते रहते हैं। बीच-बीच में उप चुनाव (मध्यावधि चुनाव) भी होते रहते हैं।
इससे हम शासन-प्रशासन, नीतियां, सरकारी निर्णय, विकास और लोक कल्याण के कार्यों की समीक्षा पर पूर्णतया ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते हैं। यदि सभी चुनाव एक साथ या एक वर्ष में हो जाएं, तो इससे सभी सरकारों और राजनीतिक दलों को तन्मयता से काम करने का अवसर मिलेगा। यदि जनप्रतिनिधि यहां-वहां, हर समय चुनाव में ही व्यस्त रहेंगे, तो जनता के लिए काम करने का अवसर कब मिलेगा?
कुल मिलाकर कहा जाय तो वन नेशन, वन इलेक्शन की अवधारणा देशहित, राज्यहित और जनहित में है।

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