मुहर्रम कब से शुरू हुआ और किसने किया? जाने


ताजीयादारी मुहर्रम का परवर्तक बादशाह तैमुर लंग
मुहर्रम कोई त्योहार नहीं है यह सिर्फ इस्लामी हिजरी सन का पहला महीना है पूरी इस्लामिक दुनिया में मुहर्रम की 9 और 10 तारीख को मुसलमान रोजा रखते हैं और मस्जिदों में घरों में इबादत की जाती है।
सवाल हिन्दुस्तान में ताजीयादारों का तो ये एक हिन्दुस्तानी रस्म है जिसका इस्लाम और शरियत से कोई ताल्लुक नहीं है। इस तमाशे की शुरूआत वर्ष 1370 में बादशाह तैमूर लंग ने किया था जिसका ताल्लुक शिया कौम से था तब से हिन्दुस्तान के शिया व सुन्नी और कुछ हिन्दु भाई भी ताजीया (इमाम हुसैन के रोज़े की तरह का ढांचा या शक्ल व जो इराक के कर्बला शहर में है) की रस्म को मानते थे।

उस वक्त बादशाह तैमूर लंग को खुश करने के लिए दरबारियों ने उस जमाने के कामगारों को इमाम हुसैन की रोज़े की तरह का ढांचा बनाने का हुक्म दिया। कुछ कामगारों ने बांस की कीमचीयों की मदद से रोज़-ए इमाम हुसैन की यादगार का ढांचा तैयार किया इसे तरह-तरह के फुलों वगैरह से सजाया गया जिसे ताजीया कहा गया और उसे बादशाह तैमूर लंग के महल में रखा गया। फिर तैमुर ताजीया की धूम पुरे हिन्दुस्तान में मच गई। मुल्क भर से राजे रखवाड़े और जायरीन इन ताजीयों की जियारत के लिए पहुँचने लगे। बादशाह तैमुर लंग को खुश करने के लिए बाकी रियासतों में इस रस्म को सख्ती से शुरूआत की गई खास तौर से दिल्ली के आस पास के शिया कौम के नवाब थे उन्होंने इस रस्म को अमल में लाना शुरू कर दिया तब से लेकर आज तक इस रस्म को हिन्दुस्तान पाकिस्तान बंग्लादेश और बर्मा में मनाया जा रहा है। जबकी खुद बादशाह तैमुर लंग का मुल्क उज्बेकिस्तान या कजाकिस्तान था शिया बहुल मुल्क ईरान इराक में ऐसे ताजीयों का रस्म आज भी नहीं देखा जाता है। 19 फरवरी 1415 में तैमुर लंग का इन्तेकाल कजाकिस्तान में हुआ लेकिन बादशाह तैमुर लंग के जाने के बाद पूरे हिन्दुस्तान में यह रस्में ताजीया मुहर्रम जारी रहा। मुगल बादशाह ने भी इस ताजीयादारी रूपी रस्म ए मुहर्रम को जोर शोर से जारी रखा जिसका ताल्लुक मजहबे इस्लाम से नहीं था और अभी भी नहीं है और इसलिए कौम या समाज को न दीनी एतबार से और न दुनियावी एतबार से कोई फायदा होता नजर आता है।
मो० परवेज आलम अधिवक्ता की कलम से
