शिक्षा मंत्री द्वारा सेवानिवृत आयु 62 वर्ष करने के विचार का बयान स्वागत योग्य : अमीन अहमद


शिक्षकों के चिर लंबित जायज मांगों को जल्द पुरा करे सरकार : उर्दू शिक्षक संघ
राँची, 14 फरवरी, 2025,
झारखंड राज्य उर्दू शिक्षक संघ के केंद्रीय महासचिव सह झारखंड प्रदेश संयुक्त शिक्षक मोर्चा के प्रदेश संयोजक अमीन अहमद ने शिक्षा मंत्री रामदास सोरेन द्वारा राज्य के शिक्षकों की सेवानिवृति उम्र 60 वर्ष से बढ़ाकर 62 वर्ष किये जाने पर विचार करने के पहल का स्वागत किया है।
उन्होंने कहा कि झारखंड प्रदेश संयुक्त शिक्षक मोर्चा में शामिल राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ, झारखंड राज्य उर्दू शिक्षक संघ, झारखंड प्रदेश प्राथमिक शिक्षक संघ, झारखंड स्टेट प्राईमरी टीचर्स एसोशिएशन एवं राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ ( 2 संवर्ग) के द्वारा लगातार विगत दो वर्षों से धरना प्रदर्शन के माध्यम से सरकार को इस मुद्दे पर आगाह करते रही है।
राज्य में व्याप्त शिक्षकों के विभिन्न लंबित मांगों को पूर्ण किये जाने के लिए राज्य के मुख्यमंत्री, शिक्षा मंत्री, विधानसभा अध्यक्ष सहित सरकार में शामिल मंत्रियों, राज्य सभा सांसद, विधायक, शिक्षा सचिव तक से लगातार गुहार लगाई जाती रही है।
इस संबंध में झारखंड राज्य उर्दू शिक्षक संघ के केंद्रीय महासचिव अमीन अहमद ने शिक्षा मंत्री के नाम खुला पत्र जारी करते हुए कहा कि सरकार जल्द शिक्षकों के लंबित और जायज मांगों को पुरा करे, ताकि मौजूदा सरकार पर विश्वास बना रहे।
उन्होंने कहा कि सरकार के संज्ञान में मुख्य रूप से रखे गए लंबित मांगों में झारखंड राज्य के शिक्षकों सहित सभी राज्यकर्मियों के सेवानिवृति उम्र 60 वर्ष से बढ़ाकर 62 वर्ष करना है, क्योंकि झारखंड के साथ एक ही समय बने दो अन्य राज्यों छत्तीसगढ़, उत्तराखंड सहित आंध्रप्रदेश में भी राज्य कर्मियों की सेवानिवृति उम्र बढ़ाकर 62 वर्ष कर दी गई है। पिछले दिनों मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री ने अपने राज्य में शिक्षकों की सेवानिवृति उम्र 62 वर्ष से बढ़ाकर विश्वविद्यालय के शिक्षकों के तर्ज़ पर 65 वर्ष किये जाने की घोषणा की है, लेकिन झारखंड में अब भी 60 ही है।
राज्य के प्राथमिक से लेकर उच्च माध्यमिक विद्यालय के शिक्षकों के साथ हो रहे आर्थिक अत्याचार को एमएसीपी का लाभ देकर राज्य सरकार इसे दूर कर सकती है। विडंबना है कि शिक्षकों को छोड़कर राज्य के सभी कर्मचारियों को नियमित रूप से पद प्रोन्नति एवं एमएसीपी का लाभ नियमानुकूल दिया जाता है. लेकिन शिक्षकों को न तो प्रोन्नति ही मिलती है और न ही एमएसीपी का लाभ ही मिल रहा है। जबकि बिहार सरकार ने शिक्षकों के साथ न्याय करते हुए 2021 में ही अपने शिक्षकों को एमएसीपी का लाभ दे चुकी है।
2006 से पूर्व के नियुक्त शिक्षकों को छठे वेतन आयोग की अनुशंसा के बावजूद उत्क्रमित वेतनमान से अभी तक वंचित रखा गया है, जबकि राज्य के सचिवालय कर्मियों को वर्ष 2019 से ही इसका लाभ दे दिया गया है। जिससे राज्य के शिक्षक अपने ही राज्य में ठगे से महसूस कर रहे हैं। ऐसे में राज्य में गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा की कल्पना कैसे कर सकते हैं जब शिक्षकों को ही न्याय नहीं मिल रहा है।
उन्होंने कहा कि गृह जिला स्थानांतरण के मामले में पूर्व के बने सभी जटिल नियमों को शिथिल करते हुए सामूहिक गृह जिला स्थानांतरण किये जाने की आवश्यकता है. क्योंकि राज्य में प्राथमिक स्तर के पठन-पाठन में स्थानीय शिक्षकों का पदस्थापन हो, ताकि बच्चों को उनके मातृभाषा में पढ़ाई कराई जा सके।
शिक्षा विभाग में व्याप्त एनजीओ के दखल से मुक्त करने की भी अपील करते हुए कहा कि राज्य में बेहतर शिक्षा व्यवस्था को मजबूत करने में शिक्षकों के योगदान की महत्ता बनी रहे।
झारखंड राज्य उर्दू शिक्षक संघ के प्रदेश प्रवक्ता शहज़ाद अनवर ने जानकारी देते हुए बताया कि विगत वर्ष मोर्चा सहित राज्य के अन्य शिक्षक संघों ने भी धरना, प्रदर्शन, आमरण अनशन आदि के माध्यम से अपनी मांगों को सरकार के संज्ञान में रख चुके हैं, लेकिन कहीं से भी समाधान नहीं हो रहा है।
